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भारतवासियों नाम खुला पत्र,
शिक्षा के मामले में बिहार सबसे नीचले पायदान पर शान से टिका हुआ है।सुशासन बाबु की सरकार ने काफी सराहनीय कार्य किये हैं,पर वे नाकाफी हैं,ऐसा मेरा मानना है। सुशासन की सरकार का कहना है कि विद्यालय नहीं जाने वाले बच्चों का प्रतिशत कम हुआ है,बिलकुल सही बात है। पर वास्तविक स्थिति ये नहीं की वे विद्यालय पढ़ने के लिए जाते हैं,बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य तो सिर्फ और सिर्फ भोजन ग्रहण करना ही होता है,यह मैंने प्रत्यक्षतः दर्शन भी किया है।विद्यालय जाने के बाद शिक्षको को धमकी देना उन बच्चों का मुख्य उद्देश्य होता है,यह भी मैंने देखा है।
ग्रामीण और शरारती तत्व भी पीछे नहीं हैं इस मामले में,अब कल की ही बात है सिकटा अंचल (जिला-पश्चिम चंपारण) के अंतर्गत कार्यरत एक शिक्षिका(नियोजित) से छिनतई की एक हृदय-विदारक घटना सामने आई है,उन शिक्षिका का मोबाइल फ़ोन समेत उनके पास के सारे रूपये छीन लिए गए ……….(नियोजित शिक्षको का वेतन कितना है यह बात बताते हुए भी मुझे शर्म आती है,बस यही समझ लीजिये की बिहार में कार्यरत एवं वेतनमान पर नियुक्त चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का वेतन लगभग इनके वेतन से तिगुना है) एक तो सुशासन की सरकार कहती है की आप लोगो को जितना मिलता है वह ज्यादा है क्योंकि आप लोग सरकारी सेवक नहीं हैं। तो वेतन के नाम पर पर कुछ नहीं और सुरक्षा राम भरोसे,वाह रे सुशासन की सरकार …………बात सिर्फ शिक्षा की नहीं है,सेवा का अधिकार एक सुविधा है जहा सुविधा 40 दिनों के बाद ही मिलती है(सरकार 14 दिनों या कितने दिनों का दावा करती है मैं नहीं जानता), मेरे मोहल्ले में बनी सडकों का क्या हाल है मैं ही जानता हूँ, बनने के 6 महीने बाद हि उस पर सीमेंट की चिप्पियाँ साटी गयी(उस सड़क का नाम संत कबीर रोड है),मेरा मोहल्ला बानुछापर पंचायत के भाग 75 में आता है,यहाँ के बी एल ओ का मोबाइल हमेशा बंद रहता है,वे अपना कार्य मेरे ही मोहल्ले के एक व्यक्ति से करवाते हैं।भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय की उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच कौन करता है? यह सारे बिहार की जनता जानती है,जो बात सारी जनता को मालूम है क्या वह बात सरकार को नहीं पता होगी ………बातें तो बहुत हैं पर अब मेरे पास समय नहीं है …….मेरी बातों को एक तरह का अन्याय ही समझे बिहार की जनता के साथ ……….ज्यादा संकट नहीं पैदा करना चाहता इसलिए अब भागना ही पड़ेगा …………
– ”संकट”
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